गुलाग
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गुलाग (रूसी: ГУЛаг) सोवियत संघ की उस सरकारी संस्था का नाम था जो सोवियत संघ में श्रम-कारावास चलाती थी। श्रम-कारावास में बंदियों से भारी मेहनत करवाई जाती थी और अक्सर उन्हें हज़ारों मील दूर साइबेरिया जैसे निर्जन क्षेत्रों में भेजा जाता था। श्रम-कारावास वही दंड प्रणाली है जिसे पुरानी भारतीय क़ानूनी भाषा में "क़ैद-ए-बामुशक्कत" और अनौपचारिक भाषा में "पत्थर तोड़ने की सज़ा" कहा जाता था। गुलाग में इन दूर-दराज़ इलाक़ों में अड्डे बने हुए थे जहाँ बंदी काम करते थे। यह क़ैदी छोटे-मोटे चोरों से लेकर सोवियत संघ की सरकार का विरोध करने वाले राजनैतिक बंदी हुआ करते थे और गुलाग प्रणाली का प्रयोग राजनैतिक विरोध कुचलने के लिए कई दशकों तक किया गया। कुछ लोगों को तो सरकार के ख़िलाफ़ चुटकुला सुनाने या काम से कभी अनुपस्थित होने के कारण से भी गुलाग भेज दिया जाता था।[1]
अनुमान किया गया है कि सोवियत संघ के दौर में इन गुलागों में कुल लगभग १.४ करोड़ लोगों को भेजा गया। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान खाना कम पड़ने से ५ लाख से अधिक कैदियों ने इन गुलागों में अपना दम तोड़ दिया।[2] माना जाता है कि १९२९-१९५३ के काल में गुलागों में १६ लाख लोगों की मृत्यु हुई।[3]