बाजीराव द्वितीय
मराठा साम्राज्य के पेशवा (1776-1851) / From Wikipedia, the free encyclopedia
बाजीराव द्वितीय (१७७५ – 1 जनवरी, १८५१), सन १७९६ से १८१८ तक मराठा साम्राज्य के पेशवा थे। इनके समय में मराठा साम्राज्य का पतन होना शुरू हुआ। इनके शासनकाल में अंग्रेजों के साथ संघर्ष शुरू हुआ।
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बाजीराव द्वितीय आठवाँ और अन्तिम पेशवा (1796-1818) थे। वह रघुनाथराव (राघोवा) का पुत्र थे। उनके प्रधानमंत्री नाना फडणवीस की मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति के लिए भारी हाथापाई हुई। पेशवा बाजीराव द्वितीय को पद से हटा दिया गया। तत्कालीन विषम परिस्थितियों में उन्हें अंग्रेज़ों की सहायता स्वीकार करनी पड़ी। अंग्रेज़ों ने तब पेशवा पर सहायक गठबंधन ( subsidiary alliance) थोप किया। बेसीन की संधि (1802) ने उन्हें 26 लाख की आय वाले क्षेत्र को अंग्रेज़ों को सौंपने के लिए मजबूर किया। प्रमुख मराठा राज्यों ने संधि को अपमानजनक माना। इस प्रकार दूसरा आंग्ल-मराठा युद्ध (1803-1806) छिड़ गया। मराठों द्वारा बहादुर प्रतिरोध के बावजूद,वे युद्ध हार गये। सहायक गठबंधन को स्वीकार करना पड़ा। अंग्रेज़ों को दोआब, अहमदनगर, ब्रोच और पहाड़ी क्षेत्र मिले। पेशवा के पसंदीदा त्र्यंबकजी द्वारा गायकवाड़ के प्रधानमंत्री गंगाधर शास्त्री की हत्या के फलस्वरूप पेशवा बाजीराव द्वितीय ब्रिटिश विरोधी बन गए । अंग्रेज़ों ने त्र्यंबकजी को गिरफ्तार कर लिया लेकिन वे पेशवा की मदद से भागने में सफल रहे। पेशवा पर एक मराठा परिसंघ बनाने और अंग्रेज़ों के खिलाफ सिंधिया, होल्कर और भोंसले के साथ साजिश रचने का आरोप लगाया गया। इसलिए, अंग्रेज़ों ने पेशवा को 1817 में पूना में एक नई संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए मजबूर किया। तदनुसार, पेशवा को मराठा परिसंघ के प्रमुख पद से इस्तीफा देना पड़ा और कोंकण अंग्रेज़ों को सौंपना पड़ा। गायकवाड़ की स्वतंत्रता को भी मान्यता देनी पड़ी। पेशवा बाजीराव इस अपमान को सहन नहीं कर सके। उन्होनें पूना रेज़िडेंसी को जला दिया। जनरल स्मिथ ने पूना पर अधिकार कर लिया। पूना के पतन के बाद पेशवा सतारा पहुँचा। सतारा पर भी जनरल स्मिथ का कब्जा हो गया। उसके बाद जनरल स्मिथ ने पेशवा की सेना को अष्ट, किरकी और कोरगाँव में हराया। यह तीसरा आंग्ल-मराठा युद्ध था। 1818 में पेशवा के आत्मसमर्पण के साथ युद्ध समाप्त हो गया। अंग्रेज़ों ने पेशवाई को समाप्त कर दिया और पेशवा के सभी प्रभुत्वों पर कब्जा कर लिया। 1851 में अपनी मृत्यु तक, पेशवा बाजी राव को वार्षिक पेंशन के साथ बिठूर में रहना पड़ा।