ऋषभदेव
प्रथम तीर्थंकर / From Wikipedia, the free encyclopedia
भगवान ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं।[4] उन्हें आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान हुंडा अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर हैं।
सामान्य तथ्य ऋषभदेव, विवरण ...
ऋषभदेव | |
---|---|
प्रथम तीर्थंकर | |
ऋषभदेव भगवान की प्रतिमा, गोलाकोट, मध्य प्रदेश | |
विवरण | |
अन्य नाम | आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ |
शिक्षाएं | अहिंसा, अपरिग्रह, असि, मसि,कृषि, विद्या, वाणिज्य, आयुर्वेद, युद्धकला, शस्त्रविद्या |
पूर्व तीर्थंकर | भूतकाल चौबीसी के अनंतवीर्य भगवान |
अगले तीर्थंकर | अजितनाथ |
गृहस्थ जीवन | |
वंश | इक्ष्वाकुवंशी क्षत्रिय |
पिता | नाभिराय |
माता | मरूदेवी |
पुत्र | भरत चक्रवर्ती, बाहुबली और वृषभसेन,अनन्तविजय,अनन्तवीर्य आदि 98 पुत्र |
पुत्री | ब्राह्मी और सुंदरी |
पंच कल्याणक | |
च्यवन स्थान | सर्वार्थ सिद्धि विमान |
जन्म कल्याणक | चैत्र कृष्ण नवमी (तीर्थंकर दिवस) |
जन्म स्थान | अयोध्या |
दीक्षा कल्याणक | चैत्र कृष्ण नवमी |
दीक्षा स्थान | सिद्धार्थकवन में वट वृक्ष के नीचे |
केवल ज्ञान कल्याणक | फाल्गुन कृष्ण एकादशी |
केवल ज्ञान स्थान | सहेतुक वन अयोध्या |
मोक्ष | माघ कृष्ण चतुर्दशी |
मोक्ष स्थान | अष्टापद/कैलाश पर्वत |
लक्षण | |
रंग | स्वर्ण |
ऊंचाई | ५०० धनुष (१५०० मीटर) |
आयु | ८,४००,००० पूर्व (५९२.७०४ × १०१८ वर्ष)[1][2][3] |
वृक्ष | दीक्षा वट वृक्ष के नीचे |
शासक देव | |
यक्ष | गोमुख देव |
यक्षिणी | चक्रेश्वरी |
गणधर | |
प्रथम गणधर | वृषभसेन |
गणधरों की संख्य | चौरासी 84 |
बंद करें
तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। तीर्थंकर के पांच कल्याणक होते हैं।